सरकार ने लोकसभा में बताया कि भारत में रह रहे कुछ रोहिंग्या प्रवासी गैरकानूनी गतिविधियों में शामिल हैं ! साथ ही यह भी साफ किया कि रोहिंग्या को ‘शरणार्थी’ का दर्जा नहीं दिया गया है बल्कि वे ‘अवैध प्रवासी’ हैं !
आखिर कौन हैं ये रोहिंग्या प्रवासी ? ये भारत कैसे पहुंचे और यहां क्यों आए ? रोहिंग्या म्यांमार से भागकर बांग्लादेश क्यों जा रहे हैं ? इन्हें अब तक म्यांमार में नागरिकता क्यों नहीं मिली ? नोबेल विजेता आंग सान सू ची दुनिया भर में मानवाधिकारों के प्रति अपनी मुखर आवाज के लिए जानी जाती हैं। म्यांमार में अब उनकी पार्टी की ही सरकार है फिर भी वह रखाइन प्रांत में रोहिंग्या लोगों पर हो रहे जुल्म पर चुप क्यों हैं ? आइए जानते हैं इस बारे में सब कुछ . . .
रखाइन प्रांत का इतिहास
रखाइन म्यांमार के उत्तर-पश्चिमी छोर पर बांग्लादेश की सीमा पर बसा एक प्रांत है, जो ३६ हजार ७६२ वर्ग किलोमीटर में फैला है। सितवे इसकी राजधानी है। म्यांमार सरकार की २०१४ की जनगणना रिपोर्ट के अनुसार रखाइन की कुल जनसंख्या लगभग २१ लाख है, जिसमें से २० लाख बौद्ध हैं। यहां लगभग २९ हजार मुसलमान रहते हैं।
रोहिंग्या कौन हैं ?
म्यांमार की बहुसंख्यक जनसंख्या बौद्ध है। रिपोर्ट के अनुसार राज्य की लगभग १० लाख की जनसंख्या को जनगणना में शामिल नहीं किया गया था। रिपोर्ट में इस १० लाख की जनसंख्या को मूल रूप से इस्लाम धर्म को माननेवाला बताया गया है। जनगणना में शामिल नहीं की गई जनसंख्या को रोहिंग्या मुसलमान माना जाता है। इनके बारे में कहा जाता है कि वे मुख्य रूप से अवैध बांग्लादेशी प्रवासी हैं। सरकार ने उन्हें नागरिकता देने से इनकार कर दिया है। हालांकि वे पीढ़ियों से म्यांमार में रह रहे हैं।
रखाइन स्टेट में २०१२ से सांप्रदायिक हिंसा जारी है। इस हिंसा में बडी संख्या में लोगों की जानें गई हैं और एक लाख से ज्यादा लोग विस्थापित हुए हैं। बडी संख्या में रोहिंग्या मुसलमान आज भी जर्जर कैंपो में रह रहे हैं। रोहिंग्या मुसलमानों को व्यापक पैमाने पर भेदभाव और दुर्व्यवहार का सामना करना पडता है। लाखों की संख्या में बिना दस्तावेजवाले रोहिंग्या बांग्लादेश में रह रहे हैं। इन्होंने दशकों पहले म्यांमार छोड़ दिया था।
रखाइन प्रांत से क्यों भागे रोहिंग्या ?
म्यांमार में मौंगडोव सीमा पर २५ अगस्त २०१७ को रोहिंग्या चरमपंथियों ने उत्तरी रखाइन में पुलिस नाके पर हमला कर १२ सुरक्षाकर्मियों को मार दिया था। इस हमले के बाद सुरक्षा बलों ने मौंगडोव जिला की सीमा को पूरी तरह से बंद कर दिया और बड़े पैमाने पर ऑपरेशन शुरू किया और तब से म्यांमार से रोहिंग्या मुसलमानों का पलायन जारी है !
आरोप है कि सेना ने रोहिंग्या मुसलमानों को वहां से खदेड़ने के मकसद से उनके गांव जला दिए और नागरिकों पर हमले किए। इस हिंसा के बाद से अब तक लगभग चार लाख रोहिंग्या शरणार्थी सीमा पार करके बांग्लादेश में शरण ले चुके हैं। म्यामांर के सैनिकों पर मानवाधिकारों के उल्लंघन के संगीन आरोप भी लगे। सैनिकों पर प्रताड़ना, बलात्कार और हत्या जैसे आरोप हैं। हालांकि सरकार ने इन आरोपों को सिरे से खारिज कर दिया था।
बांग्लादेश ने विरोध जताया
बांग्लादेश ने रोहिंग्या लोगों के अपने देश में घुसने पर कडी आपत्ति जताई और कहा कि परेशान लोग सीमा पार कर सुरक्षित ठिकाने की तलाश में यहां आ रहे हैं। बांग्लादेश ने कहा कि सीमा पर अनुशासन का पालन होना चाहिए। बांग्लादेश अथॉरिटी की तरफ से सीमा पार करनेवालों को फिर से म्यांमार वापस भेजा गया।
लेकिन एमनेस्टी इंटरनेशनल ने बांग्लादेश के इस कदम की कडी निंदा की और कहा कि यह अंतरराष्ट्रीय नियमों का उल्लंघन है। बांग्लादेश रोहिंग्या मुसलमानों को शरणार्थी के रूप में स्वीकार नहीं करता। रोहिंग्या और शरण चाहनेवाले लोग १९७० के दशक से ही म्यांमार से बांग्लादेश आ रहे हैं !
आखिर नोबेल विजेता आंग सान सू ची ने क्यों साधी चुप्पी ?
म्यांमार में २५ सालों के बाद २०१६ में चुनाव हुआ था। इस चुनाव में नोबेल विजेता आंग सान सू ची की पार्टी नेशनल लीग फोर डेमोक्रेसी को भारी जीत मिली थी। संवैधानिक नियमों के कारण वह चुनाव जीतने के बाद भी राष्ट्रपति नहीं बन पाई थीं। सू ची स्टेट काउंसलर की भूमिका में हैं। माना जाता है कि सत्ता की वास्तविक कमान सू ची के हाथों में ही है। हालांकि देश की सुरक्षा सेना के हाथों में है।
अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सरकार से सवाल पूछा जा रहा है कि रखाइन प्रांत में पत्रकारों को क्यों नहीं जाने दिया जाता। इस पर म्यांमार का कहना है कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इसकी गलत रिपोर्टिंग की जाती है। यदि सू ची अंतराष्ट्रीय दवाब में झुकती हैं और रखाइन स्टेट को लेकर कोई विश्वसनीय जांच कराती हैं तो उन्हें सेना से टकराव का जोखिम उठाना पड़ सकता है। उनकी सरकार खतरे में आ सकती है।
आंग सान सू ची पर जब इस मामले में दबाव पड़ा तो उन्होंने कहा था कि रखाइन स्टेट में जो भी हो रहा है वह ‘रूल ऑफ लॉ’ के तहत है। इस मामले में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर काफी आवाज उठ रही है। म्यांमार में रोहिंग्या के प्रति सहानुभूति न के बराबर है। रोहिंग्या मुसलमानों के खिलाफ सेना की कार्रवाई का म्यांमार में लोगों ने जमकर समर्थन किया है !
संयुक्त राष्ट्र ने स्थिति पर चिंता जताई है
संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरेश ने कहा है कि म्यांमार में रोहिंग्या मुसलमान ‘मानवीय आपदा’ का सामना कर रहे हैं। गुटेरेश ने कहा कि रोहिंग्या ग्रामीणों के घरों पर सुरक्षा बलों के कथित हमलों को किसी सूरत में स्वीकार नहीं किया जा सकता। उन्होंने म्यांमार से सैन्य कार्रवाई रोकने की भी अपील की थी।
वहीं म्यांमार की सेना ने आम लोगों को निशाना बनाने के आरोप से इनकार करते हुए कहा कि वह चरमपंथियों से लड़ रही है।
संयुक्त राष्ट्र की शरणार्थी एजेंसी का कहना है कि बांग्लादेश में अस्थायी शिविरों में रह रहे रोहिंग्या शरणार्थियों को मिल रही मदद नाकाफी है !