Saturday, January 20, 2018

देश की सुरक्षा ताक पर रखकर प. बंगाल में रोहिंग्या मुसलमानों को बसाया जा रहा है !


एक आेर सरकार ने यह घोषित किया है कि अवैध रोहिंग्या मुसलमानों की पहचान कर उन्हें वापस उनके देश भेजा जाए । वही दुसरी आेर कोर्इ ‘देश बचाओ सामाजिक कमेटी’ जो हुसैन गाजी नाम का व्यक्ति चलाता है एेसी कमेटी इन रोहिंग्याआें को निजी जमीन पर बसा रही है । हम बात कर रहे है दक्षिण २४ परगना की ! यहा टिन और बांस से बनाए गए कमरों में रोहिंग्याआें को बसाया गया है । यह जमीन किसकी है ? यह रोहिंग्या बांग्लादेश से आए है या म्यांमार से आए है ?, इनके पास वैध दस्तावेज है या नही ? इन्हे यहां बसाने में मदद करनेवाली व्यक्ती हुसैन गाजी कौन है ? इन बडे सवालों का जवाब अभी भी बाकी है । एेसे में इनकी आेर ध्यान नही देना इसका अर्थ देश की सुरक्षा के साथ खिलवाड नहीं तो आैर क्या है ?
दक्षिण २४ परगना में रोहिंग्या मुसलमानों का बना नया रिफ्यूजी कैंप !
जम्मू के बाद रोहिंग्या मुसलमान पश्चिम बंगाल को नया ठिकाना बनाते जा रहे हैं ! पश्चिम बंगाल की राजधानी कोलकाता से महज ४० किलोमीटर दूर अवैध रोहिंग्याओं के लिए एक नया रिफ्यूजी कैंप बनाया गया है । अंग्रेजी वेबसाइट इंडिया टुडे ने यह दावा किया है । यहां पर म्यांमार के राखिन प्रांत से आए २९ रोहिंग्या मुसलमानों को १६ अस्थायी कमरों में बसाया गया है । यह क्षेत्र दक्षिण २४ परगना के बरुईपुर पुलिस स्टेशन के हरदा गांव में पडता है । इन्हें निजी जमीन पर बसाया गया है । यहां पर यह लोग एक महीने से ज्यादा वक्त से रहते आ रहे हैं । बता दें कि नरेंद्र मोदी सरकार ने राज्य सरकारों को स्पष्ट आदेश दे रखा है कि अवैध रोहिंग्या प्रवासियों की पहचान कर उन्हें वापस उनके देश भेजा जाए । बता दें कि ममता बनर्जी सरकार ने कहा है कि रोहिंग्या आतंकवादी नहीं है, परंतु सुरक्षा बलों ने आशंका जताई है कि राज्य में रोहिंग्या बड़ी संख्या में आ रहे हैं और यह ट्रेंड सुरक्षा व्यवस्था के लिए खतरनाक हो सकता है !
एनजीओ ‘देश बचाओ सामाजिक कमेटी’ चलनेवाली व्यक्ति हुसैन गाजी
रिपोर्ट के अनुसार इस शेल्टर को एक गुमनाम से एनजीओ ने बनाया है । इस एनजीओ का नाम देश बचाओ सामाजिक कमेटी है । यहां पर टिन और बांस के जरिए कमरे बनाये गये हैं । इस एनजीओ को हुसैन गाजी नाम का शख्स चलाता है । दिन में यहां रोहिंग्या मुस्लिम काम खोजने शहर की ओर चले जाते हैं जबकि घरों में बच्चे और महिलाएं दिखती हैं, इस कैंप में दो महीने की उम्र के बच्चे भी देखने को मिले । हुसैन गाजी ने कहा कि उसने मानवता के आधार पर यह कैंप शुरू किया है । इस शख्स ने कहा कि पिछले साल वह बांग्लादेश का कॉक्स बाजार गया था । वहां पर रोहिंग्या मुसलमानों की हालत देखने के बाद उसे यह फैसला किया ।
स्त्रोत : जनसत्ता

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